आपमें से जो लोग मुझसे एक लंबे समय से परिचित हैं उन्होंने मेरे प्रिय शिक्षकों श्री उमाशंकर चौबे, श्रीमती मोहनी चक्रनारायण, और श्री राजेश कुमार शर्मा के संबंध में अवश्य सुना होगा. उन पर मैंने कई लेख लिखे हैं, एक फिल्म बनाई है, और मेरी हर कक्षा में भी इनका उल्लेख हुआ है. इन सभी को आज शिक्षक दिवस पर सादर नमन.
इनके अतिरिक्त मैं आज आपको मिलवा रहा हूँ अपने एक नए शिक्षक प्रोफेसर सागरमल जैन से. मुझे सागरमल जी के बारे में डेढ़ महीने पहले ही पता चला. दरअसल मैं जैन धर्म के ऊपर कुछ साहित्य खोज रहा था. एक मित्र आशुतोष भदोरिया जी की अनुशंसा पर जैन धर्म दर्शन एवं संस्कृति के सात खंड मँगवाए. अभी तक छह खंड पढ़ चुका हूँ. ये खंड सागरमल जी के शोध पत्रों का संकलन है. उनकी बेजोड़ विद्वता एवं निष्ठा आपको हतप्रभ कर देगी.
सागरमल जी दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर थे. उन्होंने न केवल अध्यापन का कार्य पूरी लगन और ऊर्जा से किया, बल्कि जैन धर्म के मूल्यों के संवर्धन एवं प्रचार प्रसार में एक महती भूमिका निभाई. आज के समय में अधिकतर अध्यापक पाठ्यक्रम को समाप्त करना ही एकमात्र लक्ष्य समझते हैं. कुछ तो पाठ्यक्रम भी अच्छे से नहीं पढ़ाते. यूट्यूब और गूगल से उथली पठन सामग्री, फुटकर नोट इकट्ठे करके बच्चों को चिपका देते हैं. ऐसे समय में सागरमल जी की अपरमित बौद्धिक क्षमता एवं एक शिक्षक के रूप में उनके द्वारा अपने कर्तव्यों और दायित्वों का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करना भी हमारे लिए अनुकरणीय है.
सागरमल जी आज देहरूप में हमारे समक्ष उपस्थित नहीं है, किंतु एक प्रेरणा के रूप में वे सदियों तक विद्यमान रहेंगे.